| Originaltitel | Dialekt | Informant | Genre Form | Genre Inhalt | ID | glossiert | Audio | 
|---|---|---|---|---|---|---|---|
| ɐːtiɬ qɒːtəŋ mɒːnʲtʲ qoː pɐːnə jiɬəɣ qɑnɬəɣ ot (VIU) | yugan khanty (YK) | Usanov, Vasiliy Ivanovich | mixed (mix) | Tales (tal) | 1619 | by Schön, Zsófia | Audio | 
| Textquelle | Herausgeber | Sammler | 
|---|---|---|
| First publication Zsófia Schön (2017). | Kayukova, Lyudmila Nikolaevna; Schön, Zsófia | Schön, Zsófia (ZS) | 
| Englische Übersetzung | Deutsche Übersetzung | Russische Übersetzung | Ungarische Übersetzung | 
|---|---|---|---|
| – | "Der Allein lebende Märchenheld und das Böse Wesen (VIU)" | – | – | 
| by Antoniol, Annette; Schön. Zsófia | 
| Zitation | 
|---|
| Schön, Zsófia 2017: OUDB Yugan Khanty (2010–) Corpus. Text ID 1619. Ed. by Schön, Zsófia. http://www.oudb.gwi.uni-muenchen.de/?cit=1619 (Accessed on 2025-11-04) | 
| ɐːtiɬ qɒːtəŋ mɒːnʲtʲ qoː pɐːnə jiɬəɣ qɑnɬəɣ ot (VIU) (glossed version) | 
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103
| 1 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
VIU: Einmal, in der Taiga, an der Kreuzung ähm... ähm lebt ein allein lebender Märchenheld.  | 
| 2 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Ähm, während er so lebt, irgendwann später erwachte ein starkes Gewitter.  | 
| 3 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Ein starkes Gewitter erwachte.  | 
| 4 | 
  | 
  | 
  | 
Er verriegelte seine Tür.  | 
| 5 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Das böse Wesen schiebt sich gerade noch zu ihm ins Haus hinein.  | 
| 6 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Das böse Wesen, ähm: „Nun mich Männlein, lass mich ins Haus hinein!“  | 
| 7 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
„Wo verstecke ich dich?“  | 
| 8 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
„Gegenüber nun... ich ähm hier auf die obere Seite der Tür ähm, als Nadel so dünn wie zum Stickmuster nähen, schiebe ich mich hier hinein.  | 
| 9 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Ähm du ähm lass mich hinein!“  | 
| 10 | 
  | 
  | 
Er ließ ihn ins Haus.  | 
| 11 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Jenes böse Wesen Stickmuster... als Nadel so dünn wie zum Stickmuster nähen, auf der oberen Seite der Tür... auf der oberen Seite dort blieb er stehen.  | 
| 12 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Das Gewitter lärmte, lärmte, dort um das Haus herum kracht es die ganze Zeit.  | 
| 13 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Und das Gewitter, nachdem das Gewitter weggegangen war, das böse Wesen ähm menschlicher Körper, in der Gesamtheit eines Menschen stand er so da.  | 
| 14 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Er wendet sich um und sagt: „Wirklich, mein lieber Mensch, du hattest mich gerettet.  | 
| 15 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Nun ähm lass uns losgehen um mein Land anzuschauen!“  | 
| 16 | 
  | 
  | 
  | 
Nun ähm...  | 
| 17 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
„Nun, wie komme ich denn zu dir?  | 
| 18 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Du bist doch eine Gestalt mit Federn, eine Gestalt mit Beinen.  | 
| 19 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Ich bin doch ein Mensch.  | 
| 20 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Wie komme ich zu dir?“  | 
| 21 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Nun wie du zu mir kommst?  | 
| 22 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Du ähm zu mir... du setzt dich auf mich drauf!  | 
| 23 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Ich bringe dich.“  | 
| 24 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Du kennst dieses Märchen [oder]?  | 
| 25 | 
  | 
  | 
Du kennst es!  | 
| 26 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Du lachst einfach so jajeeee!  | 
| 27 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
SZS: Erzähl es weiter!  | 
| 28 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
VIU: Aha!  | 
| 29 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Und, auf ihn drauf so, er saß [dort].  | 
| 30 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
„Nun ki... nun mach einen Ranzen!  | 
| 31 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Mach einen Ranzen und setz dich in den Ranzen hinein!“  | 
| 32 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Er machte einen Ranzen und er setzte sich in den Ranzen.  | 
| 33 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Er lief los, jenes böse Wesen.  | 
| 34 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
So lief er, so lief er und dieser Chante denkt: „Wie schnell laufen wir wohl?“  | 
| 35 | 
  | 
  | 
  | 
Mit seinem Kopf blickte er um sich.  | 
| 36 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Als er mit seinem Kopf umherblickte, fiel seine Mütze, der er auf seinem Kopf hatte, weit weg.  | 
| 37 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Entlang des Rückens des bösen Wesens fing er an zu schlagen: „He!, He!, Lande auf dem Boden!“  | 
| 38 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
„Was ist denn mit dir passiert Mensch?“  | 
| 39 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
„Meine Mütze, die ich auf meinem Kopf hatte, habe ich irgendwo zurückgelassen?“  | 
| 40 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
„Ich habe dir doch gesagt, blicke nicht auf!“  | 
| 41 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
„Meine Mütze, die ich auf meinem Kopf hatte, habe ich irgendwo weit weg zurückgelassen.“  | 
| 42 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Und sie gingen zurück, sie fanden jene Mütze.  | 
| 43 | 
  | 
  | 
  | 
So gingen sie [weiter].  | 
| 44 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
So gingen sie, so gingen sie, irgendwann später, dieses böse Wesen lebte... in die Stadt kamen sie so an.  | 
| 45 | 
  | 
  | 
  | 
Er kam dort an.  | 
| 46 | 
  | 
  | 
  | 
Was ist das denn?  | 
| 47 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
So gute und jegliche Getränke und dergleichen!  | 
| 48 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Für jenen Chanten haben sie eine Opfergabe gemacht.  | 
| 49 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
XXXSo dort wie auch immer, eine heilige Woche, dort so während einer fischigen Woche, feierten sie.  | 
| 50 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Irgendwann später begann es dem Chanten langweilig zu werden.  | 
| 51 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Das böse Wesen wusste das.  | 
| 52 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Er wendet sich um und sagt: „In ähm unserem Land so, so leben wir.  | 
| 53 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Wenn du [mich] einmal mit einem Schlegel aus Espenholz schlägst, dann werde ich ohnmächtig.  | 
| 54 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Wenn du [mich] ein zweites Mal haust, werde ich lebendig.“  | 
| 55 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Sie saufen, irgendwann später hat der Chante jenem bösen Wesen darauf festgelegt, es wird hinfallen.  | 
| 56 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Nun er ging in den Wald, er machte einen Schlegel aus Espenholz, er ging ins Haus.  | 
| 57 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Und [seinen] Kopf schlug er einmal.  | 
| 58 | 
  | 
  | 
  | 
Aha was ist los???  | 
| 59 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Während sie so gehen, während sie gehen ähm, zu einem Menschenhaus, aha... so zeige ich dir die Wahrheit!  | 
| 60 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
„Wenn du dann zurückgehst, kommst du zu einem Menschenhaus.  | 
| 61 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Die Ehefrau und der Ehemann haben eine Tochter.  | 
| 62 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Jene Tochter, ähm ihre Seele diese Nacht... in dieser Nacht nimmt man ihre Seele, an diesem Tag nimmt man es, zu jenem Grad ist sie geworden.  | 
| 63 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Sie hoffen auf dich, zur Heilung.  | 
| 64 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Du in jener Nacht sag dann: du heilst die Tochter der Frau und des Manns.  | 
| 65 | 
  | 
  | 
Ähm.  | 
| 66 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Nur geht ihr raus.  | 
| 67 | 
  | 
  | 
Ihr geht raus.  | 
| 68 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Ähm draußen, nachdem sie rausgegangen sind.  | 
| 69 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Ähm neben ihr ist ein kleines Tischlein.  | 
| 70 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Öffne jenen Tisch.  | 
| 71 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Dort ist ein Schüsselchen mit Blut.  | 
| 72 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Als ich gekommen war, wurde ihr Blut von mir ausgetrunken.  | 
| 73 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Und tu es dort hin.  | 
| 74 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Jenes Schüsselchen dort trink es.  | 
| 75 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Von jenem Mann... jenes Mädchen dort wird dann lebendig.“  | 
| 76 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
[Ru. Na gut,] er ging zurück, jenes böse Wesen.  | 
| 77 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Mit dem Schlegel aus Espenholz schlug er ihn.  | 
| 78 | 
  | 
  | 
  | 
Er ging zurück.  | 
| 79 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Während er dort so geht, eines Tages zum übernachten... nachdem die Zeit zum übernachten anbrach, kam er zu der Frau und dem Mann.  | 
| 80 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Zur Frau und zum Mann ging er ins Haus dort hinein.  | 
| 81 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Es wird ihm Essen und dergleichen gegeben.  | 
| 82 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Sichtlich [stimmt etwas nicht] mit der Frau und dem Mann.  | 
| 83 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Wer weiß was mit ihrem Gesichtern passiert ist, er schaut sie an.  | 
| 84 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
„Was ist mit euch passiert?“  | 
| 85 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Während wir so leben, wurde unsere Tochter krank!  | 
| 86 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Geradewegs, ihre Seele diese Nacht, wirklich in dieser Nacht nimmt man es.  | 
| 87 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Du bist wohl ein von weitem gekommener Besucher und Gast.  | 
| 88 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Könnte sie nicht von dir wieder gesund gemacht werden?“  | 
| 89 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Zu jener Zeit erinnert er sich: aha, es wurde mir doch gezeigt!  | 
| 90 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
„Nun ähm, heilen, heile ich sie.  | 
| 91 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Ihr ähm ähm geht raus!“  | 
| 92 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Hinaus um... sie gingen.  | 
| 93 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Er ging ins Haus, ins Zimmer jenes Mädchens.  | 
| 94 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Er inspiziert es: ähm der Tisch... es gibt einen Tisch.  | 
| 95 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Dort öffnete er es so.  | 
| 96 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Es ist wahr, dort ist ein Schüsselchen mit Blut.  | 
| 97 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Jenes Schüsselchen hob er hoch und auf... jener Tochter gab er es zu trinken.  | 
| 98 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Jenes Mädchen wurde zum gesunden Menschen, sie wurde gesund, sie wurde ganz.  | 
| 99 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Sofort vom Vater, von der Mutter wurde sie ihm als Frau dort versprochen.  | 
| 100 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Jener Gast et... Besucher, Gast wurde dort [mit dem Mädchen] verheiratet.  | 
| 101 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Mit jener Legende, mit jenem Märchen lebt er bis heute.  | 
| 102 | 
  | 
  | 
  | 
  | 
Das Ende der Legende ist hier.  | 
| 103 | 
  | 
  | 
  | 
Du hast es doch gehört!  |